अगले दिन मीना भाभी की बातों को सोचता हुआ जब रवि स्कूल से वापस घर आया तो मां ने पूछा "रवि तू सुंदरकांड का पाठ करता है क्या" ? इस प्रश्न पर रवि एकदमसे चौंका "मां ऐसा क्यों पूछ रही है" ? फिर उसे मीना भाभी की बात ध्यानमें आई । उन्होंने कहा था कि अगर मां ये पूछे तो क्या कहना है । उसने तुरंत कह दिया
"हां मां , एक दो दिन से शुरू किया है । क्यों क्या बात है" ?
"नहीं, कुछ खास नहीं । मैंने कभी देखा नहीं तुझे पाठ करते हुये इसलिए पूछ रही थी" ।
"फिर पता कैसे लगा" ?
"अरे, आज मंदिर में मीना मिली थी । वह कह रही थी कि लाल जी सुंदरकांड का पाठ कर रहे हैं आजकल । अगर मैं इजाजत दे दूं तो तू उनके घर में भी पाठ कर सकता है । है न" ?
रवि को आश्चर्य हुआ कि मीना भाभी किस तरह अपनी बात मनवा लेती हैं । उसे बड़ा अच्छा लगा मगर वह तो सुंदर कांड का पाठ नहीं करता है , पर उसने मां से झूठ बोला था । इस बार वह खामोश ही रहा लेकिन बाद में इतना ही बोला "आप चाहोगी तो मैं चला जाऊंगा पाठ करने " ।
"चले जाना । पर पहले कुछ खा पी तो ले, सुबह का भूखा है" । और वह रवि को कुछ खाने का सामान लाने के लिए किचन में चली गई ।
रवि अल्पाहार करके मीना भाभी के घर पर आ गया । घर पर बस वही दोनों व्यक्ति थे । मीना की सास शांति मुन्ना को लेकर उसे घुमाने चली गई थी ।
मीना रवि का इंतजार ही कर रही थी । रवि के आते ही उसने घर के दरवाजे बंद कर लिये । अब आंगन में रवि और मीना अकेले खड़े थे आमने सामने । मीना उसे लेकर अपने कमरे में बिछी चारपाई पर आ गई और उसने हाथ पकड़कर रवि को चारपाई पर बैठा लिया । रवि भी कल की तुलना में आज थोड़ा कॉन्फिडेंट नजर आ रहा था फिर भी उसे अकेले में डर लग रहा था । मीना उसकी हालत देखकर बोली
"आप तो बहुत डरपोक निकले लाल जी । मर्द हो तो मर्द की तरह निडर बनो । मैं तो औरत होकर भी किसी से नहीं डरती । फिर तुम क्यों डरते हो" ?
रवि कुछ नहीं बोला । कमरे में खामोशी व्याप्त हो गई । भाभी ने ही चुप्पी तोड़ी । उसने रवि का चेहरा अपनी दोनों हथेलियों में ले लिया और अपनी ओर घुमाकर उसकी आंखों में देखकर कहा
"एक बात बताओ लाल जी, मैं तुम्हें कैसी लगती हूँ" ?
रवि शरमाते हुए बोला "अच्छी"
इस पर मीना खिलखिला कर हंस पड़ी । "सिर्फ अच्छी" ?
रवि झेंप गया "नहीं । बहुत अच्छी"
मीना अपना चेहरा रवि के पास ले जाकर बोली " ऐसे नहीं, मेरी आंखों में देखकर कहो कि मैं तुम्हें कैसी लगती हूँ" । मीना ने रवि का चेहरा ऊपर उठाते हुए कहा ।
रवि ने अपना चेहरा ऊपर उठाया और मीना भाभी की आंखों में सीधे देखा । बहुत खूबसूरत आंखें थीं मीना भाभी की । बड़ी बड़ी काली काली । नशीली सी । पनियल । रवि को लगा कि यदि वह उन दोनों गहरी आंखों में ज्यादा देर तक देखेगा तो वह उन आंखों के अथाह समुद्र में डूब जायेगा । उसे तो तैरना भी नहीं आता था । फिर कौन बचायेगा उसे ? उसने घबरा कर अपनी आंखें बंद कर ली । मीना एक चतुर खिलाड़ी थी तुरंत उसकी दुविधा समझ गई । उसके चेहरे को दोनों हाथों में लेकर उसकी आंखों में झांकते हुये मीना बोली "अब किसका डर है" ?
"डूबने का " । बड़ी मुश्किल से रवि कह पाया ।
"मगर यहां तो आसपास में कहीं पर पानी नहीं है । फिरकैसे डूबोगे" ?
" आसपास में तो पानी नहीं है भाभी, मगर आपकी आंखों में तो मदिरा से लबालब समंदर लहरा रहा है । ये दोनों आपकी आंखें नहीं हैं बल्कि प्रशांत महासागर और हिंद महासागर हैं । मुझे डर है कि मैं कहीं इनमें डूब ना जाऊं ? मुझे तो तैरना भी नहीं आता है , भाभी । फिर मेरा क्या होगा" ? रवि ने मीना भाभी की आंखों में डूबते हुये कहा ।
मीना ने ऐसे प्रेम पगे वचन पहले कभी सुने नहीं थे । उसका पति संतोष पढ़ा लिखा नहीं था इसलिए वह प्रेम की लच्छेदार भाषा नहीं जानता था । प्यार का इजहार कैसे किया जाये, इसका उसे कुछ पता नहीं था । औरत के दिल की किताब में क्या लिखा है, उसे कुछ नहीं पता था । रवि ने साहित्यिक भाषा का प्रयोग करके मीना की वीणा के तारों को छेड़ दिया था । हर कोई औरत प्रेम की बातें करना चाहती है । मीना इन बातों से वंचित ही रही थी अब तक । रवि ने वह काम किया थि जिसके लिये मीना पांच वर्षों से तरस रही थी । इसी रोमांस की तो भूखी थी वह । भगवान ने शायद रवि के रूप में उसे उसके सपनों का शहजादा भेज दिया था । भोलाभाला , मासूम , अल्हड़ , सजीला और किशोर । एकदम कोरा ।
मीना भाभी उसकी इसी अदा, मासूमियत पर फिदा हो गई थी । उसके दोनों हाथ अपने हाथों में लेकर कहने लगी "मीना भाभी के रहते डूबने से क्या डरना ? तुम निस्संकोच आंखों के गहरे समंदर में छलांग लगा दो , बाकी मैं संभाल लूंगी । जी भरकर स्विमिंग करो इन नैनों के सागर में । ये मदिरा बहुत नशीली है लाल जी, जी भरकर पीओ" । भाभी की सांसों की गर्मी बढ़ने लगी थी । उसकी आंखें बंद होने लगी थीं ।
" डर तो लगता है मीना भाभी , मगर आपसे नहीं आपकी सागर सी गहरी आंखों से लगता है । कहीं इनमें डूब गया तो मेरा क्या होगा" ?
"नहीं डूबोगे"
"वो कैसे भाभी"
"मैं डूबने दूंगी तभी तो डूबोगे न । मैं तैरना जानती हूँ और एक कुशल तैराक हूँ इसलिए मैं अपने साथ साथ तुम्हें भी बचा लूंगी" । विश्वास के साथ कहा था मीना भाभी ने ।
भाभी और रवि दोनों एक दूसरे की आंखों में काफी देर तक डूबे रहे । मीना भाभी ने रवि के चेहरे पर अपने नर्म नर्म हाथ फिराये तो रवि ने उन्हें पकड़ लिया । मीना ने प्रश्नवाचक निगाहों से रवि को देखा तो रवि मुस्कुराकर बोला "गुदगुदी सी होती है भाभी" । और उसने गर्दन झुका ली । "पहले कभी किसी ने ऐसे किया नहीं है न" ।
रवि का मुस्कुराता हुआ चेहरा इतना आकर्षक, मासूम और भोला लग रहा था कि वह मीना भाभी के दिल पर कयामत ढ़ा रहा था । हलकी हलकी मूंछें और छोटी छोटी दाढ़ी जो अभी पूरी तरह घर से बाहर भी नहीं निकली थी, कहर ढ़ा रही थी । भाभी ने रवि के दोनों हाथों को चूम लिया । भाभी के होठों का अपने हाथों में स्पर्श पाकर रवि के पूरे बदन में कंपन्न होने लगा । रवि ने यद्यपि रीना को भी किस किया था मगर वह किस एकतरफा था । उसमें रीना की भावनाएं , प्यार शामिल नहीं थे इसलिए उस किस में वो आनंद नहीं था जो होना चाहिए था । मगर यहां पर तो मीना भाभी रवि पर जैसे सब कुछ लुटाने पर आमादा थी । वह उसकी स्मार्टनैस, मासूमियत और भोलेपन पर फिदा हो गई थी ।
मीना भाभी की शादी को हुये पांच वर्ष हो चुके थे । संतोष के साथ जब उसका विवाह हुआ था तब मीना बीस साल की एक बहुत खूबसूरत लड़की थी । चूंकि वह गरीब परिवार में पैदा हुई थी इसलिए ज्यादा पढ़ लिख नहीं पाई थी । जब शादी के लायक हुई तब शादी करने के लिए पैसे नहीं थे उसके पिता के पास । जब संतोष का रिश्ता उसके पिता के पास आया तब यह भी ऑफर आया था कि शादी का दोनों तरफ का खर्च भी संतोष के घरवाले ही उठायेंगे । संतोष ठेकेदार के यहां नौकरी करता था दिल्ली में । उसके पिता बहुत पहले ही स्वर्ग सिधार गये थे । संतोष की मां शांति देवी ने मेहनत मजदूरी करके संतोष को पाला पोषा था । अभावों में पला बढ़ा संतोष का मन पढने में नहीं लगा और उसने मजदूरी शुरू कर दी थी ।
एक दिन उनके ही गांव का एक ठेकेदार रामौतार शांति के पास आया और संतोष को दिल्ली ले जाकर काम सिखाने को कहा । इसी बीच उसे 5000रु महीने देने का वादा भी किया । शांति राजी हो गई और संतोष रामौतार के साथ दिल्ली चला गया था । धीरे धीरे वह काम सीख गया और फिर उसने रामौतार की नौकरी छोड़कर अपनी खुद की ठेकेदारी शुरू कर दी । महीने दो महीने में वह गांव आता था और दो चार दिन गांव मेः रहकर चला जाता था । इतने कम समय में प्रेम से मीना का "पेट" कैसे भरता भलवह प्यार की प्यासी ही रह रही थी ।
Chetna swrnkar
30-Jul-2022 10:50 PM
Nice
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fiza Tanvi
15-Jan-2022 11:52 AM
Bahut badiya
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Hari Shanker Goyal "Hari"
15-Jan-2022 01:21 PM
धन्यवाद जी
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